सोमवार, 21 नवंबर 2016

मूल मंत्र

 ੴ सति नामु करता पुरखु निरभउ निरवैरु अकाल मूरति अजूनी सैभं गुर प्रसादि ॥

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आदि ग्रंथ की प्रथम बानी 'जपु' है। जीसे सत्कार से 'जपजी साहिब' भी कहते हैं। सब से पहले महावाक्य लिखा है, इसे मूलमंत्र कहा जाता है। मूलमंत्र की शुरुआत किसी भाषा के अक्षर या शब्द से नहीं, बल्कि अंक एक (१) से होती है, साथ में गुरमुखि लिपि के प्रथम अक्षर को लिखा गया है दोनों को मिलाकर एक ओअंकार पढ़ा जाता है। जिसका अर्थ यह है कि परमात्मा एक है, जिसने इस सारी सृष्टि की रचना की है। इसके बाद शब्द आता है 'सति नामु' जिसे सतनाम पढ़ाया जाता है। इसका शाब्दिक अर्थ है:- वजूद वाला। यहां गुरु साहिब समझाते हैं कि परमात्मा कोई सोची विचारी कल्पना मात्र नहीं है, उसका वजूद है। इसके बाद मन में सवाल पैदा होता है कि अगर परमात्मा का वजूद है तो वह करता क्या है? आगे गुरु जी हमारी शंकाओं का नाश करते हुए कहते हैं कि वह 'करता पुरखु' है अर्थात वह सृष्टि को रचने वाला और पालने वाला है। जो कुछ भी मनुष्य अपनी आंखों से देख सकता है, वह सब परमात्मा ने बनाया है। कर्ता का सिद्धांत रूहानियत के सबसे महत्वपूर्ण पहलुओ में से एक है। वह प्रभु हम सबका मालिक सब कुछ करने वाला और पालने वाला है। हम सबका वजूद पूरी तरह से परमात्मा पर निर्भर है। 'पुरखु'  'परुष' का बदला हुआ रूप है, 'पुरखु'  का अर्थ है शक्तिमान या विधाता परमात्मा सर्वशक्तिमान है और सर्व व्यापक है। आगे मन में प्रश्न उठता है कि अगर वह पुरुष है उसका वजूद है तो वह किसी से डरता भी होगा, किसी से वैर विरोध भी होगा, और उसका जन्म भी होता होगा? इन सब प्रश्नों का उत्तर देते हुए आगे गुरु जी कहते हैं कि नहीं वह किसी से डरता नहीं है ना ही उसका किसी से वैर विरोध है। डर तो उसका होता है अगर कोई हमसे शक्तिशाली हो किंतु परमात्मा से शक्तिशाली और है ही नहीं। वैर विरोध भी  उसका होता है अगर कोई हमारे बराबर हो किंतु परमात्मा के बराबर तो परमात्मा ही है, तो उसका किसी से बैर कैसा। आगे गुरु जी कहते हैं कि वह 'अकाल मूरति' है और 'अजूनी' है। अर्थात परमात्मा काल के दायरे में नहीं आता वह समय के दायरे से बाहर है परंतु इसका यह अर्थ नहीं है कि अगर वह काल के दायरे में नहीं आता तो उसका वजूद नहीं है इसलिए गुरुजी ने 'अकाल' के साथ 'मूरति' भी लिखा है। 'मूरति' का अर्थ है हस्ती या वजूद अर्थात यह कि परमात्मा काल के दायरे से बाहर की एक शक्तिशाली हस्ती है, जिसका वजूद भी है। आगे गुरु जी कहते हैं कि परमात्मा माता के गर्भ में नहीं आता। ना उसका जन्म होता है, ना ही वह कभी मरता है। जन्म तो सिर्फ परमात्मा के अवतारों का होता है। फिर प्रश्न उठता है कि परमात्मा कहां से आया अगर उसका जन्म ही नहीं हुआ? गुरु जी कहते हैं 'सैभं' अर्थात जिसका वजूद अपने आप से हो। आगे प्रश्न उठता है कि ऐसे गुणों वाले परमात्मा से मिलाप किस प्रकार किया जा सकता है ?तो गुरु जी लिखते हैं 'गुर प्रसादि' अर्थात गुरु की कृपा द्वारा हम परमात्मा से मिलाप कर सकते हैं। गुरु जो भी रास्ता बताता है, निसंकोच होकर गुरु पर भरोसा करके चलो उचित समय आने पर गुरु अपनी रहमत द्वारा हमें परमात्मा से मिलाप करवा देगा।

मंगलवार, 6 सितंबर 2016

तेरी याद विच बीते हर शाम ते सवेरा

मेनू है आस तेरी तू आसरा है मेरा
तेरी याद विच बीते हर शाम ते सवेरा
तू पातशाह में गोलि तेनु में किवे रिजावा
ऐ दो जहान दे मालिक सुन ले मेरी सदावा

हुन ना भुलावी दाता भुल्या सी में बथेरा
तेरी याद विच बीते हर शाम ते सवेरा

झोली च मेरे हिरा मुरशद ने सी जद पाया
खुशिया च नचया प्रीतम अते रूह ने गीत गया
गलिया च नूर तक के मिटदा गया हनेरा
 तेरी याद विच बीते हर शाम ते सवेरा

मेनू है आस तेरी तू आसरा है मेरा
तेरी याद विच बीते हर शाम ते सवेरा
तू पातशाह में गोलि तेनु में किवे रिजावा
ऐ दो जहान दे मालिक सुन ले मेरी सदावा

मेरे सतगुरु जी तुसी मैहर करो, में दर तेरे ते आई होइ आ

मेरे सतगुरु जी तुसी मैहर करो, में दर तेरे ते आई होइ आ
मेरे कर्मा वल न वेखयो जी, में कर्मा तो शरमाई होइ आ

जो दर तेरे ते आ जांदा, ओ असल खजाने पा जांदा
मेनू वी खाली मोड़ी ना, में वी दर ते आस लगाई होइ आ
मेरे सतगुरु जी तुसी मैहर करो, में दर तेरे ते आई होइ आ
मेरे कर्मा वल न वेखयो जी, में कर्मा तो शरमाई होइ आ

तुसी तारन हार कहोन्दे हो, डुब्या नु बने लोंदे हो
मेरा वी बेडा पार करो, में वी दुख्यारन आई होइ आ
मेरे सतगुरु जी तुसी मैहर करो, में दर तेरे ते आई होइ आ
मेरे कर्मा वल न वेखयो जी, में कर्मा तो शरमाई होइ आ

सब संगी साथी छोड़ गए, सब रिश्ते नाते तोड़ गए
तू वी किदरे ठुकराई ना, ऐ सोच के में कब्रराई होइ आ
मेरे सतगुरु जी तुसी मैहर करो, में दर तेरे ते आई होइ आ
मेरे कर्मा वल न वेखयो जी, में कर्मा तो शरमाई होइ आ

रूह गद-गद हो गई है दातिया दर्शन करके तेरे

रूह गद-गद हो गई है दातिया दर्शन करके तेरे
तेरे ज्ञान दे चानन ने किते दूर दिला दे हनेरे
रूह गद-गद हो गई है दातिया_ _ _ _ _

मन मोहनी सूरत है तेरी ऐ मेरे दिलदार
छो तेरे चरणा दि साईंया देवे स्वर्ग नजारा
मेरी बहा ना छोड़ी जी,  दात्या में लड़ लग गई तेरे
रूह गद-गद हो गई है दातिया_ _ _ _ _

 मेनू कमली रमली नु एने बिन वेखै अपनाया
ऐ जग तो सोहना ऐ नी ऑडियो में जो वर घर पाया
मेरी रूह रानी ने ले लाये हुन इंददे नाल फेरे
रूह गद-गद हो गई है दातिया_ _ _ _ _

मेरे ख्वाबो ख्याल च नही सी मेनू मिल जाऊ माहि सोहना
मेरे दिल दी तख्ती ते बैठा आन परोहणा
शहनाइयां वज उठिया नी जद ऐ आ वड़्या विच मेरे
 रूह गद-गद हो गई है दातिया_ _ _ _ _

कर मैहर उतारा ना ऐसी ज्ञान दी कर फुलकारी
तेरी सोच मुताबिक ही ढल जाये मेरी जिंदगी सारी
तेरी सेवा वस जाये हुन ता रोम-रोम विच मेरे
रूह गद-गद हो गई है दातिया_ _ _ _ _

तन, मन, धन और सुरत की सेवा

तन की  सेवा जैसा की नाम से ही स्पष्ट है कि तन की सेवा क्या है। किसी स्थान पर शरीरक तोर पर उपस्थित हो कर सेवा करना तन की सेवा है। तन ...