सब से पहले हम यह समझने की कोशिश करते हैं कि सेवा किसे कहते हैं। अपने से बड़ो कि आज्ञा का पालन करना, वृद्ध व्यक्ति की सहायता करना, गरीबो और अनाथों की दया भाव से सहायता करना सब सेवा है। अगर हम रूहानियत में सेवा की बात करे तो अपने सतगुरु के हुक्म अनुसार कोई भी कार्य करना व भजन सिमरन करना सेवा है।
अभी हमारे मन मे प्रश्न उठा कि हम सब 21वी सदी के जीव है। हम तो कोई भी कार्य करते है तो केवल अपने फायदे के लिए, तो हम सेवा क्यो करे? इसके जवाब में एक कहावत है " कर सेवा और खा मेवा"। अर्थात अर्थत सेवा से लोक-परलोक के सभी सुख मिलते है। विस्तार में कहे तो मोक्ष की प्राप्ति होती हैं। सेवा का फल जो भी है परमात्मा एक दम नकद देता है। मतलब के सेवा का फल साथ कि साथ मिलता हैं। किंतु हमे सेवा का फल जरूरी नही हम जो चाहे वही मील। सेवा का फल परमात्मा वही देता है जो हमारे लिए अच्छा हो ।
एक बार एक व्यक्ति अपने गुरु के पास गुरु के हुक्म अनुसार सेवा के लिए गया। उस व्यक्ति ने कई दिन तक मन लगा कर सेवा की। कुछ दिन बाद जब वह व्यक्ति अपने वापिस अपने घर जाने के लिए आज्ञा लेने जाने लगा। तभी उस व्यक्ति के कान में बहुत जोर का दर्द हुआ और वह वही पर बेहोश हो कर गिर गया। कुछ समय बाद उसे होश आया तो उसके कान का दर्द ठीक था। फिर वह व्यक्ति अपने गुरु के पास गया और गुरु जी को सारी घटना सुनाई ओर पूछा कि मेरे साथ ऐसा क्यों हुआ। तो गुरु जी ने जवाब देते हुए कहा" तेरे कुछ कर्मो का हिसाब था "। तो व्यक्ति ने पूछा " कैसे कर्म?" गुरु जी ने बताया कि" तूने बचपन मे एक पथर उठा कर एक चिड़िया को मार था। वो पथर सीधा चिड़िया के सिर में जा कर लगा। नीचे गिरते हुए चिड़िया के मन से निकला के जिसने मुझे पथर मारा भगवान उसे भी दर्द दे। ये उसी क्रम का दर्द था।" तो उस व्यक्ति ने फिर सवाल किया कि "सतगुरु मतलब की मेरे सेवा का कोई फल नही मुझे जो इतना दर्द मिला।" इस पर गुरु जी मुस्कुराये और बोले" ये दर्द तुझे के दिन के लिए होना था जो तेरी सेवा के कारण कट गया और कुछ पलों के दर्द से ही तेरा कर्म कट गया।"
देखा दोस्तो सेवा का फल इतना नकद है। सेवा का फल तभी पूर्ण है जब तक हम अपने पूरे मन से सेवा नही करते। सेवा हम इसलिए करते है कि हमारे अंदर से अहंकार का नाश हो और परमात्मा का प्यार प्राप्त हो। जो व्यक्ति निष्काम भाव से सेवा करते है एक दिन वह ऐसा पद प्राप्त करते है कि सारा संसार उनकी सेवा में हाजिर होता है।
अभी हमारे मन मे प्रश्न उठा कि हम सब 21वी सदी के जीव है। हम तो कोई भी कार्य करते है तो केवल अपने फायदे के लिए, तो हम सेवा क्यो करे? इसके जवाब में एक कहावत है " कर सेवा और खा मेवा"। अर्थात अर्थत सेवा से लोक-परलोक के सभी सुख मिलते है। विस्तार में कहे तो मोक्ष की प्राप्ति होती हैं। सेवा का फल जो भी है परमात्मा एक दम नकद देता है। मतलब के सेवा का फल साथ कि साथ मिलता हैं। किंतु हमे सेवा का फल जरूरी नही हम जो चाहे वही मील। सेवा का फल परमात्मा वही देता है जो हमारे लिए अच्छा हो ।
एक बार एक व्यक्ति अपने गुरु के पास गुरु के हुक्म अनुसार सेवा के लिए गया। उस व्यक्ति ने कई दिन तक मन लगा कर सेवा की। कुछ दिन बाद जब वह व्यक्ति अपने वापिस अपने घर जाने के लिए आज्ञा लेने जाने लगा। तभी उस व्यक्ति के कान में बहुत जोर का दर्द हुआ और वह वही पर बेहोश हो कर गिर गया। कुछ समय बाद उसे होश आया तो उसके कान का दर्द ठीक था। फिर वह व्यक्ति अपने गुरु के पास गया और गुरु जी को सारी घटना सुनाई ओर पूछा कि मेरे साथ ऐसा क्यों हुआ। तो गुरु जी ने जवाब देते हुए कहा" तेरे कुछ कर्मो का हिसाब था "। तो व्यक्ति ने पूछा " कैसे कर्म?" गुरु जी ने बताया कि" तूने बचपन मे एक पथर उठा कर एक चिड़िया को मार था। वो पथर सीधा चिड़िया के सिर में जा कर लगा। नीचे गिरते हुए चिड़िया के मन से निकला के जिसने मुझे पथर मारा भगवान उसे भी दर्द दे। ये उसी क्रम का दर्द था।" तो उस व्यक्ति ने फिर सवाल किया कि "सतगुरु मतलब की मेरे सेवा का कोई फल नही मुझे जो इतना दर्द मिला।" इस पर गुरु जी मुस्कुराये और बोले" ये दर्द तुझे के दिन के लिए होना था जो तेरी सेवा के कारण कट गया और कुछ पलों के दर्द से ही तेरा कर्म कट गया।"
देखा दोस्तो सेवा का फल इतना नकद है। सेवा का फल तभी पूर्ण है जब तक हम अपने पूरे मन से सेवा नही करते। सेवा हम इसलिए करते है कि हमारे अंदर से अहंकार का नाश हो और परमात्मा का प्यार प्राप्त हो। जो व्यक्ति निष्काम भाव से सेवा करते है एक दिन वह ऐसा पद प्राप्त करते है कि सारा संसार उनकी सेवा में हाजिर होता है।